2 लोगो ने कैसे बनाई गूगल वेबसाइट नोकरी सेलरी कितनी मिलती है wiki malik google company history
6 May 2019
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Google Kaise bana jankari लैरी पेज और सेर्गेई ये वही दो बड़े नाम हे जिन्होंने google बनाई थी ये लोग ब्रिन नामक स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में pHD कर रहे थे 1996 में एक सर्च इंजन वेबसाइट पर काम करना शुरू किया
जल्द ही उन्होंने उस बिल्कुल ही नए किस्म के सर्च इंजन को बनाने में कामयाबी पा ली जो इंटरनेट पर कुछ भी खोजने के लिए मानवीय दृष्टिकोण से काम करता था।
गूगल किसी भी विषय पर सामग्री को इकट्ठा करके लोगों के आगे पेश नहीं करता था, बिल्क यह समझदारी से काम लेते हुए सबसे पहले यह पता करने की कोशिश करता था कि अमुक पेज को अब तक कितने लोगों ने सबसे अधिक बार पढा या फिर देखा है।
इसके आधार पर ही यह पेज की लोकिप्रयता तय करता था और सबसे ज्यादा प्रासंगिक सामग्री ही उपभोक्ता को उपलब्ध कराता था।
गूगल के नाम के पीछे भी एक बेहद रोचक कहानी है। गणितज्ञों ने खरबों से भी अधिक बडी़ संख्या वाले अंक को 'गूगोल' शब्द की संज्ञा दी है। अब चूंकि पेज और ब्रिन का सर्च इंजन भी इंटरनेट पर पडी़ खरबों वेबसाइटों को खंगालने का काम करता था, इसिलए इसके लिए गूगोल नाम का चुनाव किया गया।
लेकिन यह नाम बोलने में कुछ-कुछ अटपटा सा लगता था। इसिलए नए सर्च इंजन के लिए अंतिम तौर पर गूगल नाम का चुनाव किया गया ( यहाँ क्लिक करके जाने Google में काम करने वाले टॉप भारतीय और उनकी प्रति माह सैलरी कमाई)
गूगल का पहली बार इस्तेमाल करने के बाद सन माइक्रोसिस्टम्स कंपनी के संस्थापक एंडी बैक्टलशेम इतने उत्साहित हुए थे कि उन्होंने पेज और ब्रिन को गूगल पर काम करते रहने के लिए प्रोत्साहन स्वरूप एक लाख डॉलर का अनुदान दिया था।
कुछ समय बाद ही नौ लाख डॉलर अतिरिक्त धन की व्यवस्था करने के बाद 1998 में गूगल कंपनी की कैलिफोर्निया के मेनेलो पार्क से शुरुआत हो गई।
गूगल की शुरुआत होने के कुछ समय बाद ही माइक्रोसाफ्ट कंपनी ने भी अपनी सर्च सेवा एमएसएन सर्च की शुरुआत की। इसे आजकल बिंग सर्च इंजन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा सैकड़ों दूसरे तरह के सर्च इंजन भी इन दिनों इंटरनेट पर अपनी पकड़ बनाने की जुगत में लगे हुए हैं।
लेकिन इस सबके बावजूद दुनिया के किसी भी कोने में जब भी किसी को अपनी पसंदीदा जानकारी इंटरनेट के संजाल में खोजनी होती है तो उसे गूगल का नाम ही सबसे पहले सूझता है।
शुरुआत में इन्हें काफी निराशा का सामना करना पडा़ और अपने जेब खर्च से मिले पैसों वगैरा से वे गूगल में लगातार सुधार करते रहे।
जल्द ही उन्होंने उस बिल्कुल ही नए किस्म के सर्च इंजन को बनाने में कामयाबी पा ली जो इंटरनेट पर कुछ भी खोजने के लिए मानवीय दृष्टिकोण से काम करता था।
गूगल किसी भी विषय पर सामग्री को इकट्ठा करके लोगों के आगे पेश नहीं करता था, बिल्क यह समझदारी से काम लेते हुए सबसे पहले यह पता करने की कोशिश करता था कि अमुक पेज को अब तक कितने लोगों ने सबसे अधिक बार पढा या फिर देखा है।
इसके आधार पर ही यह पेज की लोकिप्रयता तय करता था और सबसे ज्यादा प्रासंगिक सामग्री ही उपभोक्ता को उपलब्ध कराता था।
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Google Kaise bana jankari
लेकिन यह नाम बोलने में कुछ-कुछ अटपटा सा लगता था। इसिलए नए सर्च इंजन के लिए अंतिम तौर पर गूगल नाम का चुनाव किया गया ( यहाँ क्लिक करके जाने Google में काम करने वाले टॉप भारतीय और उनकी प्रति माह सैलरी कमाई)
गूगल का पहली बार इस्तेमाल करने के बाद सन माइक्रोसिस्टम्स कंपनी के संस्थापक एंडी बैक्टलशेम इतने उत्साहित हुए थे कि उन्होंने पेज और ब्रिन को गूगल पर काम करते रहने के लिए प्रोत्साहन स्वरूप एक लाख डॉलर का अनुदान दिया था।
कुछ समय बाद ही नौ लाख डॉलर अतिरिक्त धन की व्यवस्था करने के बाद 1998 में गूगल कंपनी की कैलिफोर्निया के मेनेलो पार्क से शुरुआत हो गई।
गूगल की शुरुआत होने के कुछ समय बाद ही माइक्रोसाफ्ट कंपनी ने भी अपनी सर्च सेवा एमएसएन सर्च की शुरुआत की। इसे आजकल बिंग सर्च इंजन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा सैकड़ों दूसरे तरह के सर्च इंजन भी इन दिनों इंटरनेट पर अपनी पकड़ बनाने की जुगत में लगे हुए हैं।
लेकिन इस सबके बावजूद दुनिया के किसी भी कोने में जब भी किसी को अपनी पसंदीदा जानकारी इंटरनेट के संजाल में खोजनी होती है तो उसे गूगल का नाम ही सबसे पहले सूझता है।
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