आपकी ताकत कभी आपकी कमजोरी क्यों Ek kahani
19 February 2016
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अभी परसों की ही तो बात है बेटी नैना "नन्हा मुन्ना राही हूँ" गा रही थी। मैंने पूछा "बेटा ये किसने बताया" वो बोली "दादू ने।" ये गाना कुछ दिन से इसकी छोटी सी जबान पर है। गाती बस इतना ही है कि "नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ।" फिर इसके लिए यह गाना डाऊनलोड़ किया और इसे सुनाया तो यह खुश हो गई। और मैं अपने बचपन में चला गया। तब यह गाना अक्सर 26 जनवरी के आसपास टीवी और रेडियो पर बजता था।मैं बड़े चाव से इस गाने को सुना करता था। तब नही पता था कि
जय हिंद क्या होता है?
देश क्या होता?
देशभक्ति क्या होती हैं?
सोचता हूँ क्या अब पता चल गया है इन सबके बारें में? 25 जनवरी को स्कूलों में भी बड़े चाव से जाते थे, स्कूल के कार्यक्रम में देश भक्ति गाने खूब सुनाए और बजाए जाते थे। और 26 जनवरी को सुबह जल्दी नहा धो तैयार होकर पड़ोसी के टीवी पर परेड देखा करते थे। कमरा लोगों से भर जाया करता था। बच्चे नीचे और बड़ॆ चारपाई पर बैठ जाते थे। और आज ...............................
और फिर बेटी को 26 जनवरी के बारे में बताया एक बच्चा बनकर। फिर बेटी से पूछा कि कल 23 जनवरी है क्या आप देखोगे परेड। घूमने के मामले में बाप पर गई बेटी भला कहाँ चूकती झट कह दिया पापा मैं भी जाऊँगी इंडिया गेट परेड देखने। फिर सोचा ये क्या कह दिया कल की तो छुट्टी भी नही हैं खैर..........। 8 बजे उठने वाली बेटी परेड का नाम लेते ही झट से 7 बजे उठ गई। और हम पहुँच गए राजपथ। पर चाव ही चाव में हम ये भूल गए कि परेड देखने के लिए पास की जरुरत होती है। मोबाईल भी नही की किसी को कहके पास मँगवाए जाए। और भला सुबह सुबह 9 बजे कौन पास देने आऐगा? ये भी अजीब रुल है कि परेड देखने के लिए पास की जरुरत पड़े वो भी अपने ही देश में? जी में तो आया कि अभी जाकर किसी पुलिस अफसर से भिड़ जाऊँ। फिर पता नही क्यों गुस्सा शांत हो गया? वैसे कभी कभी सोचता हूँ कि जो आपकी ताकत होती वही कभी आपकी कमजोरी क्यों बन जाती है?
खैर फिर सोचा कि चलते हैं यार किसी अफसर से विनती करके देख लेगे। फिर वही हुआ जो अक्सर हम सभी के साथ हो जाता है। और हम उसे किस्मत कह कर उस ऊपर वाले को शुक्रिया कहते हुए उसे याद करते है जिसे हमने आजतक देखा नहीं। फिर हम रेल भवन से कृषि भवन की तरफ जाने के लिए रोड पार करने लगे गाडियों की आवाजाही के बीच। तभी किसी ने रुकने के लिए आवाज देकर हमें रोक लिया और हम रुक गए। आवाज देने वाला भी अपने परिवार के साथ परेड देखने जा रहा था पास आकर बोला कि "गाडियों को निकल जाने दो क्यों रिस्क लेते हो।" ऐसे इंसान को क्या कहते है जो आपको नही जानता पर आपकी परवाह कर जाता हैं?
आप सोचो, मैं आगे बढ़ता हूँ उसी इंसान के साथ। वह मेरे से पूछ बैठता है कि ये वी एन ब्लाक किधर पड़ेगा। मैं कहता हूँ कि वही जाकर पुलिस वालों से पता चलेगा। बात बात में वो कहता है कि उसके पास दो कार्ड है वी आई पी कैटिगरी के और हम तीन है इसलिए एक तो अडजैस्ट हो जाऐगा। और मैं कहता हूँ कि कोई बात नही, चलते है वहाँ बैठे अफसर से बात कर लेंगे। फिर शुरु के गेट से इसी पास से अदंर हो जाते है। तभी कुछ दूर चलकर उनकी जानकार एक लेडिज आती है जिसके पास एक पास ज्यादा है और वह हमें वो पास दिलावा देते है। पर वह पास किसी और ब्लोक का होता है। और हम पास लेके निकल पड़ते है धन्यवाद कहते हुए। और मैं उन्हें भी शुक्रिया कह देता हूँ जिसे सभी नीली छतरी वाला कहते हैं। और भावुक अपनी बेटी के माथे को चूम लेता हूँ। सेकड़ो खाली कुर्सियों पर बैठे चंद लोग। एक बेटा बुजुर्ग हो चुकी अपनी माँ को परेड दिखाने लाया हुआ है। यह माँ किस्मत वाली है। नहीं तो आजकल कौन परवाह करता है माँ बाप और उनकी इच्छाओं की? वही इनसे चंद कुर्सियों दूर एक परिवार गर्व से बैठा है क्योंकि उनका बेटा परेड में शामिल है देश का सिपाही बनकर। और इधर मेरी बेटी बड़े चाव से परेड देख रही है। और बीच बीच में पूछती है कि पापा ये क्या है पापा ये क्या है। जब जब वह कुछ पूछती है मुझे ना जाने क्यों खुशी महसूस होती? कमाड़ो की पद चाप की आवाजें और दिल में जोश भरती उनकी आवाजें से लेकर आकाश में लड़ाकू विमान के रोमांच तक परेड में सब सुन्दर लगा। बेटी से पूछा क्या क्या अच्छा लगा आपको तो उसकी लिस्ट तो देखिए जरा, पी पी, जहाज, Horse,Camel,Helicopter, Balloon,.......................लिस्ट लम्बी है उसकी पसंद की। जाने क्यों एक संतुष्टि का भाव लिए हम घर की तरफ हो लिए? बहुत दिनों के बाद संतुष्टि भरा दिन। और अब सुनो सभी शहीदों को नमन करते हुए हम बाप बेटी की पसंद का ये गाना।
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और फिर बेटी को 26 जनवरी के बारे में बताया एक बच्चा बनकर। फिर बेटी से पूछा कि कल 23 जनवरी है क्या आप देखोगे परेड। घूमने के मामले में बाप पर गई बेटी भला कहाँ चूकती झट कह दिया पापा मैं भी जाऊँगी इंडिया गेट परेड देखने। फिर सोचा ये क्या कह दिया कल की तो छुट्टी भी नही हैं खैर..........। 8 बजे उठने वाली बेटी परेड का नाम लेते ही झट से 7 बजे उठ गई। और हम पहुँच गए राजपथ। पर चाव ही चाव में हम ये भूल गए कि परेड देखने के लिए पास की जरुरत होती है। मोबाईल भी नही की किसी को कहके पास मँगवाए जाए। और भला सुबह सुबह 9 बजे कौन पास देने आऐगा? ये भी अजीब रुल है कि परेड देखने के लिए पास की जरुरत पड़े वो भी अपने ही देश में? जी में तो आया कि अभी जाकर किसी पुलिस अफसर से भिड़ जाऊँ। फिर पता नही क्यों गुस्सा शांत हो गया? वैसे कभी कभी सोचता हूँ कि जो आपकी ताकत होती वही कभी आपकी कमजोरी क्यों बन जाती है?
खैर फिर सोचा कि चलते हैं यार किसी अफसर से विनती करके देख लेगे। फिर वही हुआ जो अक्सर हम सभी के साथ हो जाता है। और हम उसे किस्मत कह कर उस ऊपर वाले को शुक्रिया कहते हुए उसे याद करते है जिसे हमने आजतक देखा नहीं। फिर हम रेल भवन से कृषि भवन की तरफ जाने के लिए रोड पार करने लगे गाडियों की आवाजाही के बीच। तभी किसी ने रुकने के लिए आवाज देकर हमें रोक लिया और हम रुक गए। आवाज देने वाला भी अपने परिवार के साथ परेड देखने जा रहा था पास आकर बोला कि "गाडियों को निकल जाने दो क्यों रिस्क लेते हो।" ऐसे इंसान को क्या कहते है जो आपको नही जानता पर आपकी परवाह कर जाता हैं?
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