ऑनलाइन शॉपिंग क्या है सावधानियां online shopping mistakes hindi
5 October 2015
हमसे पूछें : अगर आपको भी बैंक से ऐसी ही या किसी और परेशानी से दो-चार होना पड़ा है तो हमें लिखें। हम अपने एक्सपर्ट से आपके चुनिंदा सवालों का जवाब लेकर छापेंगे। आप हमारी एक्सपर्ट से इंग्लिश या हिंदी में सवाल पूछ सकते हैं। अपने सवाल आप हमें मंगलवार तक sundaynbt@gmail.com पर भेजें। सब्जेक्ट में consumer लिखें।
प्रेमलता, कंस्यूमर एक्सपर्ट
अलर्ट कंस्यूमर
बरतें ये सावधानियां
•सामान बेचने का प्रॉसेस और ट्रैकिंग प्रोसेस को भी अच्छी तरह से समझें। कंपनी की पॉलिसी के बारे में जानकारी लें। इसके बिना कहीं भी अकाउंट डिटेल शेयर न करें।
•कैश ऑन डिलिवरी का ऑप्शन चुनने से रिफंड के लंबे प्रॉसेस से बचा जा सकता है।
•अगर बार-बार कैश ऑन डिलिवरी ऑप्शन चुनने के बाद सामान रिसीव करने से मना कर देते हैं तो कंपनी के रेकॉर्ड मे आप डिफॉल्टर हो सकते हैं। ऐसे में अगर कोई ई-कॉमर्स पोर्टल ऑर्डर लेने से मना कर देता है तो यह उसका अधिकार है। प्रॉडक्ट्स न बेचने का हक पोर्टल का है।
इंटरनेट से खरीदारी अब आम बात हो चुकी है। नेट से खरीदारी ने इतना जोर पकड़ लिया है कि किसी खास कानून के बिना भी सब काम चल रहा है। इंटरनेट ने पूरे मार्केट को हमारे डेस्कटॉप और मोबाइलों में समेट दिया है। जितनी तेजी से यह हमारी जिंदगी में शामिल हुआ है, उतना ही ज्यादा इस पर खरीदारी के बाद कंस्यूमर परेशान दिखता है। आइए जानते हैं क्या हैं ऑनलाइन खरीदारी के झंझट और उनसे निपटने के तरीके :
गलती किसकी
ऑनलाइन खरीदारी के केस में कई पार्टियां शामिल होती हैं इसलिए जिम्मेदारी तय करने में भारी कंफ्यूजन होता है। कभी कुरियर वाले पर दोष डाला जाता है तो कभी डीलर पर। ऐसे में यह समझने की जरूरत है कि ऑनलाइन खरीदारी में कंस्यूमर के हक क्या हैं। वहीं सामान की जगह खाली पैकेट मिलना, गलत समान निकलना, पेमेंट के बाद भी ऑर्डर न पहुंचना, दिखाई गई चीज से अलग सामान भेजना, अपने आप ही ऑर्डर कैंसल हो जाना, खराब क्वॉलिटी होना आदि शिकायतें आम है।
ऑनलाइन खरीदारी का कानून
देश में ई-कॉमर्स के लिए अलग से कानून नहीं है लेकिन कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट में ही कंस्यूमर के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है। साल 2000 में आईटी एक्ट बन जाने के बाद ईमेल से हुआ कोई भी कम्युनिकेशन कानूनी मान्यता रखता है और इसे लीगल डॉक्युमेंट माना जा सकता है। ऐसे में इंटरनेट पर हुई खरीदारी का सबूत भेजा गया ईमेल हो सकता है। मुश्किल तब आती है जब कंस्यूमर वेबसाइट के बारे में पड़ताल किए बिना ही कुछ ऑर्डर कर देते हैं। वे पैसे भी अडवांस में भर देते हैं। कुछ वेबसाइट्स गलत पतों पर चल रही होती हैं और ऐसे में कंस्यूमर कोर्ट किसी भी तरह से मदद करने में लाचार हो जाती हैं। किसी भी कोर्ट को नोटिस देने के लिए एक पते की जरूरत होती है। इस संबंध मे कोनसीम इंफो प्राइवेट लिमिटेड बनाम गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के मामले मे दिल्ली की अदालत में गूगल ने तर्क दिया कि गूगल एक सर्च इंजन है और इस पर कोई भी वेबसाइट क्या विज्ञापन देती है, इसकी जिम्मेदारी गूगल की नहीं है। कोर्ट ने इस तर्क को माना लेकिन यह भी कहा कि अगर किसी फ्रॉड की जानकार गूगल को मिलती है तो 36 घंटों के भीतर एक्शन लेना होगा। कोर्ट के सामने यह परेशानी भी आती है कि मामला किस कोर्ट में भेजा जाए/ एक्शन कहां लिया जाए/ ऐसे में कंस्यूमर कोर्ट कंस्यूमर के ऑर्डर करने की जगह और कंपनी के पते दोनों जगहों पर केस दर्ज कर रही है।
प्रेमलता, कंस्यूमर एक्सपर्ट
अलर्ट कंस्यूमर
बरतें ये सावधानियां
• इंटरनेट पर किसी भी तरह की खरीदारी करने से पहले कंपनी के बारे में और उसके रजिस्टर्ड ऑफिस के बारे में पता कर लें। हो सके तो उसके रिव्यू भी इंटरनेट पर देख लें। कोई भी कंपनी जब धोखाधड़ी करके भाग जाती है तो अक्सर ठगे गए कंस्यूमर उनके बारे में इंटरनेट पर लिख देते हैं।
•सामान बेचने का प्रॉसेस और ट्रैकिंग प्रोसेस को भी अच्छी तरह से समझें। कंपनी की पॉलिसी के बारे में जानकारी लें। इसके बिना कहीं भी अकाउंट डिटेल शेयर न करें।
• अगर ऑर्डर करने के बाद सामान उपलब्ध नहीं है तो इसकी शिकायत नहीं कर सकते। ई-कॉमर्स का प्लैटफ़ॉर्म हमें डीलरों से सामान मुहैया कराता है और यह डिमांड और सप्लाई के फंडे पर काम करता है। अमूमन यह सूचना 48 घंटों में मिलनी चाहिए और अगर पेमेंट हुआ है तो रिफंड होना चाहिए।
•कैश ऑन डिलिवरी का ऑप्शन चुनने से रिफंड के लंबे प्रॉसेस से बचा जा सकता है।
•अगर बार-बार कैश ऑन डिलिवरी ऑप्शन चुनने के बाद सामान रिसीव करने से मना कर देते हैं तो कंपनी के रेकॉर्ड मे आप डिफॉल्टर हो सकते हैं। ऐसे में अगर कोई ई-कॉमर्स पोर्टल ऑर्डर लेने से मना कर देता है तो यह उसका अधिकार है। प्रॉडक्ट्स न बेचने का हक पोर्टल का है।
इंटरनेट से खरीदारी अब आम बात हो चुकी है। नेट से खरीदारी ने इतना जोर पकड़ लिया है कि किसी खास कानून के बिना भी सब काम चल रहा है। इंटरनेट ने पूरे मार्केट को हमारे डेस्कटॉप और मोबाइलों में समेट दिया है। जितनी तेजी से यह हमारी जिंदगी में शामिल हुआ है, उतना ही ज्यादा इस पर खरीदारी के बाद कंस्यूमर परेशान दिखता है। आइए जानते हैं क्या हैं ऑनलाइन खरीदारी के झंझट और उनसे निपटने के तरीके :
गलती किसकी
ऑनलाइन खरीदारी के केस में कई पार्टियां शामिल होती हैं इसलिए जिम्मेदारी तय करने में भारी कंफ्यूजन होता है। कभी कुरियर वाले पर दोष डाला जाता है तो कभी डीलर पर। ऐसे में यह समझने की जरूरत है कि ऑनलाइन खरीदारी में कंस्यूमर के हक क्या हैं। वहीं सामान की जगह खाली पैकेट मिलना, गलत समान निकलना, पेमेंट के बाद भी ऑर्डर न पहुंचना, दिखाई गई चीज से अलग सामान भेजना, अपने आप ही ऑर्डर कैंसल हो जाना, खराब क्वॉलिटी होना आदि शिकायतें आम है।
ऑनलाइन खरीदारी का कानून
देश में ई-कॉमर्स के लिए अलग से कानून नहीं है लेकिन कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट में ही कंस्यूमर के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है। साल 2000 में आईटी एक्ट बन जाने के बाद ईमेल से हुआ कोई भी कम्युनिकेशन कानूनी मान्यता रखता है और इसे लीगल डॉक्युमेंट माना जा सकता है। ऐसे में इंटरनेट पर हुई खरीदारी का सबूत भेजा गया ईमेल हो सकता है। मुश्किल तब आती है जब कंस्यूमर वेबसाइट के बारे में पड़ताल किए बिना ही कुछ ऑर्डर कर देते हैं। वे पैसे भी अडवांस में भर देते हैं। कुछ वेबसाइट्स गलत पतों पर चल रही होती हैं और ऐसे में कंस्यूमर कोर्ट किसी भी तरह से मदद करने में लाचार हो जाती हैं। किसी भी कोर्ट को नोटिस देने के लिए एक पते की जरूरत होती है। इस संबंध मे कोनसीम इंफो प्राइवेट लिमिटेड बनाम गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के मामले मे दिल्ली की अदालत में गूगल ने तर्क दिया कि गूगल एक सर्च इंजन है और इस पर कोई भी वेबसाइट क्या विज्ञापन देती है, इसकी जिम्मेदारी गूगल की नहीं है। कोर्ट ने इस तर्क को माना लेकिन यह भी कहा कि अगर किसी फ्रॉड की जानकार गूगल को मिलती है तो 36 घंटों के भीतर एक्शन लेना होगा। कोर्ट के सामने यह परेशानी भी आती है कि मामला किस कोर्ट में भेजा जाए/ एक्शन कहां लिया जाए/ ऐसे में कंस्यूमर कोर्ट कंस्यूमर के ऑर्डर करने की जगह और कंपनी के पते दोनों जगहों पर केस दर्ज कर रही है।