कर्नाटक के चुनाव में दलित राजनीति क्यो Dalit politics in india pdf population meaning rise
10 May 2018
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Dalit politics in india pdf population meaning rise आखिर दलित पर राजनीति क्यों चाहे कोई भी चुनाव हो हर बार यही होता है कर्नाटक के चुनाव होने वाले हैं इस बार भी यही होगा हमारा सवाल है कि ऐसा क्यों होता है आज हम भारत में होने वाली दलित राजनीति का एक गहरा डीएनए टेस्ट करेंगे हम
आपको बताएंगे कि हमारे देश में दलित, आरक्षण, और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम लेकर किस तरह की राजनीति हुई है और इस राजनीति से कितने बड़े-बड़े दलित नेताओं का उत्थान हुआ है हमने लंदन में उस जगह से ग्राउंड रिपोर्टिंग भी की है जहां डॉक्टर भीमराव अंबेडकर करीब 4 वर्षों तक रहे थे उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की थी भीमराव अंबेडकर के करीब से जानेंगे और महसूस करेंगे तो आपको इस बात का एहसास होगा की काबिलियत कभी
आरक्षण की मोहताज नहीं होती और जो लोग डॉक्टर अंबेडकर के नाम का सहारा लेकर आरक्षण की राजनीति करते हैं उन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं है कि डॉक्टर अंबेडकर अपने जीवन में हमेशा मेरिट और मेहनत के सहारे आगे बढ़े आरक्षण के सारे नहीं
हम आपको बताएंगे कि हमारे देश में दलित आरक्षण और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम लेकर किस तरह की राजनीति हुई है और इस राजनीति से कितने बड़े-बड़े दलित नेताओं का उत्थान हुआ है और जब भी चुनाव होते हैं देश की राजनीति में दलित चिंतन अचानक शुरू हो जाता है वादों के बीज बोकर वोटों की फसल उगाई जाती है और जब फसल कट जाती है तो नेता अपने अपने घर चले जाते हैं और दलित बही रह जाता है जहां पर वह वर्षों से लगातार संघर्ष कर रहा है
आगे पढे - दलित का मतलब अर्थ what is dalit meaning
पूरे देश की आबादी में दलितों की कुल आबादी करीब 17% से 19% और देश में कुल वोटरों में करीब 14 करोड़ दलित पूरे देश की 66 लोकसभा सीटों पर दलितों का असर है और आपको समझ में आया होगा कि हमारे नेता दलितों के बारे में कितनी बातें क्यों करते हैं
क्यों हर बड़े नेता के भाषण में दलित शब्द का प्रयोग किया जाता है देश में दलित वोटों की संख्या काफी ज्यादा है इसलिए आजादी के 70 वर्षों में सबसे ज्यादा राजनीति दलितों और गरीबों के नाम पर हुई है दलित और गरीब हमारे देश के नेताओं के विषय रहे आज की तारीख में देश में बहुत सारे नेता दलित और पिछड़े वर्ग से आते हैं और यह सभी नेता अपने चुनावी अभियान में दलित उत्थान का वादा करते हैं लेकिन दलितों की सामाजिक स्थिति कभी नहीं सुधरती और जब यह नेता चुनाव हार जाते हैं कानूनी मुकदमा चलता है तो यही नेता हमेशा एक ही तर्क का सहारा लेते हैं कि दलित होने की वजह से उनके खिलाफ साजिश हो रही है
दलित होने की वजह से उन्हें परेशान किया जा रहा है देश में दलितों को सशक्त बनाने के लिए सामाजिक आंदोलन की शुरुआत सबसे पहले समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और महात्मा गांधी ने की थी लेकिन देश में दलित राजनीति संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भीमराव अंबेडकर
आपको बताएंगे कि हमारे देश में दलित, आरक्षण, और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम लेकर किस तरह की राजनीति हुई है और इस राजनीति से कितने बड़े-बड़े दलित नेताओं का उत्थान हुआ है हमने लंदन में उस जगह से ग्राउंड रिपोर्टिंग भी की है जहां डॉक्टर भीमराव अंबेडकर करीब 4 वर्षों तक रहे थे उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की थी भीमराव अंबेडकर के करीब से जानेंगे और महसूस करेंगे तो आपको इस बात का एहसास होगा की काबिलियत कभी
आरक्षण की मोहताज नहीं होती और जो लोग डॉक्टर अंबेडकर के नाम का सहारा लेकर आरक्षण की राजनीति करते हैं उन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं है कि डॉक्टर अंबेडकर अपने जीवन में हमेशा मेरिट और मेहनत के सहारे आगे बढ़े आरक्षण के सारे नहीं
हम आपको बताएंगे कि हमारे देश में दलित आरक्षण और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम लेकर किस तरह की राजनीति हुई है और इस राजनीति से कितने बड़े-बड़े दलित नेताओं का उत्थान हुआ है और जब भी चुनाव होते हैं देश की राजनीति में दलित चिंतन अचानक शुरू हो जाता है वादों के बीज बोकर वोटों की फसल उगाई जाती है और जब फसल कट जाती है तो नेता अपने अपने घर चले जाते हैं और दलित बही रह जाता है जहां पर वह वर्षों से लगातार संघर्ष कर रहा है
आगे पढे - दलित का मतलब अर्थ what is dalit meaning
पूरे देश की आबादी में दलितों की कुल आबादी करीब 17% से 19% और देश में कुल वोटरों में करीब 14 करोड़ दलित पूरे देश की 66 लोकसभा सीटों पर दलितों का असर है और आपको समझ में आया होगा कि हमारे नेता दलितों के बारे में कितनी बातें क्यों करते हैं
क्यों हर बड़े नेता के भाषण में दलित शब्द का प्रयोग किया जाता है देश में दलित वोटों की संख्या काफी ज्यादा है इसलिए आजादी के 70 वर्षों में सबसे ज्यादा राजनीति दलितों और गरीबों के नाम पर हुई है दलित और गरीब हमारे देश के नेताओं के विषय रहे आज की तारीख में देश में बहुत सारे नेता दलित और पिछड़े वर्ग से आते हैं और यह सभी नेता अपने चुनावी अभियान में दलित उत्थान का वादा करते हैं लेकिन दलितों की सामाजिक स्थिति कभी नहीं सुधरती और जब यह नेता चुनाव हार जाते हैं कानूनी मुकदमा चलता है तो यही नेता हमेशा एक ही तर्क का सहारा लेते हैं कि दलित होने की वजह से उनके खिलाफ साजिश हो रही है
दलित होने की वजह से उन्हें परेशान किया जा रहा है देश में दलितों को सशक्त बनाने के लिए सामाजिक आंदोलन की शुरुआत सबसे पहले समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और महात्मा गांधी ने की थी लेकिन देश में दलित राजनीति संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भीमराव अंबेडकर
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