चिल्लाने से हो सकती हे गले में ज्यादा तकलीफ


आवाज व्यक्ति की पहचान हे. इसके लिए हमारे गले के अंदर स्वरपेटी “लेरिंक्स” होता हे. इसमें तारनुमा दो वोकल कार्ड होते हे. इनके आपस में मिलने से ही आवाज पैदा होती हे. इनके सही रूप से कार्य करने से ही हमें अलग-अलग तरह की आवाजें, फुसफुसाना, चिल्लाना और गाना आदि कर सकते हे. यह बेहद नाजुक सरंचना हे, जो ज्यादा दबाव या अनदेखी झेल नहीं पाते और कई बार इन वजह से इनमे सुजन आ जाती हे. इसे लेरिंजाइसिस कहते हे. इससे आवाज की गुणवता पर प्रभाव पड़ता हे.

लक्षण
1. आवाज में खराश या भारीपन आ जाता हे. कई बार तो आवाज निकल ही नहीं पाती हे.

2. गले में सूखापन, चुभन बनी रहती हे. दर्द रह सकता हे. बार-बार सुखी खांसी आ सकती हे. कई बार ऐसा लगता हे जैसे गले में कुछ फंसा हे. निगलने में भी दर्द होता हे.

3. संक्रमण होने पर भुखर आ सकता हे. छोटे बच्चों में इस स्थिति में सांस लेने में तकलीफ हो सकती हे. कई बार तो सांस लेते समय आवाज आती हे.

उपचार
ज्यादातर मामलों में वायरल संक्रमण होने पर यह कुछ ही दिन में ठीक हो जाता हे. अन्य संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक या एंटी फंगल दवाएं दी जाती हे. दवाओं के जरिये एसिडिटी पर काबू पाया जाता हे. स्पीच थेरेपी भी इस स्थिति में बहुत सहायक होती हे. इसमें उचित ढंग से बोलने का अभ्यास कराया जाता हे. आवाज के कुछ विशेष व्यायाम भी कराये जाते हे.

सावधानियां
1. लगातार लम्बे समय तक बोलने से बचना चाहिए. 15-20 मिनट से ज्यादा बोलना हो तो बिच-बिच में गैप देते रहे.

2. अनावश्यक रूप से खांस-खांस कर गले को साफ़ करने की आदत से बचना चाहिए. अगर गले में कुछ महसूस हो रहा हे तो इस प्रकार खांसने की बजाय कुछ घूंट पानी पी ले. भाप का प्रयोग करे.

3. यदि बैकग्राउंड में कोई शोर हो रहा हे तो ऊँचा बोलने की कोशिस नहीं करनी चाहिए.

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