विज्ञापन किस तरह दिखाए जाते हैं ek jankari paise ke
8 October 2015
1 Comment
अखबारों में विज्ञापन ads छपे मिलते हैं जिनमें यह भी लिखा होता है कि इस विज्ञापन की कतरन लाने पर 10% से 15% की छूट ऐसे कई मामलों में अखबार को उतने ही विज्ञापनों का भुगतान किया जाता है जितनी कतरन दुकान वाले के पास पहुंचती हैं. मतलब, भुगतान प्रति विज्ञापन
अब अगर आपको विज्ञापनों से कमाई करनी है तो अखबार का मालिक तो होना पडेगा ओह्ह्ह....क्या नहीं हो सकता तो चलो अखबार नहीं तो वेबसाईट या ब्लॉग होना चाहिए फिर online विज्ञापन दिखाए जाने के दो तरीके मुख्य हैं पहला तो Contextual advertising (प्रासंगिक विज्ञापन), दूसरा Behavioral targeting (स्वभावजन्य लक्ष्य)
Contextual advertising को कुछ यूँ समझिए कि कोई टीवी सीरियल अगर बच्चों पर केंद्रित कर दिखाया जा रहा तो उसमें आने वाले विज्ञापन में बच्चों की रुचि वाले उत्पाद की भरमार होगी. जैसे कॉम्प्लान, कैडबरी, टूथपेस्ट, बिस्कुट वगैरह. या फिर किसी विषय पर कार्यक्रम चल रहा हो, जैसे कि यात्रा. तो विज्ञापन दिखाए जाएंगे किसी होटल के, सस्ते टिकट के, सूटकेस/ बैग के जाए जिसमें Kids’ Lunch Box Favorites की बात की गई है. इस पर किस तरह के विज्ञापन है यह खुद ही देख लीजिए
गूगल ऐडसेंस उदाहरण
ऐसा ही कुछ इस लिंक पर देखा जा सकता है जिसमें धनिया पुदीना चटनी की विधि बताई गई है और विज्ञापन कौन से दिख रहे आप खुद देख लीजिए
गूगल ऐडसेंस
आपने देखा कि जो कुछ लिखा गया है उससे ही संबंधित विज्ञापन, गूगल का सर्वर उस स्थान पर दिखाना शुरू कर देता है जो विज्ञापन के लिए निर्धारित किया गया है वेबसाइट के मालिक द्वारा.
Contextual advertising के अंतर्गत दिखाए गए विज्ञापन पूरी तरह से उस ऑनलाइन लेख में लिखे गए शब्दों पर निर्भर है जिसे ‘देख-पढ़’ कर विज्ञापन-सर्वर यह निर्णय लेता है कि उसके पिटारे में इन शब्दों से संबंधित कौन सा विज्ञापन दिखाना है. और अगर एक ही शब्द से संबंधित बहुत सारे विज्ञापन है तो विज्ञापन-सर्वर उस विज्ञापन को प्राथमिकता देगा जिसको दिखाने लिए ऊंची बोली लगाई है विज्ञापन देने वाली कंपनी ने. यह कोई ज़रूरी नहीं कि कोई एक ही विज्ञापन हमेशा दिखे. अगले ही किसी पल अगर वह पृष्ठ दोबारा देखा जाए तो संभव है कोई और विज्ञापन दिखे.
Behavioral Targeting को समझना हो तो उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति कपड़ों की दुकान पर जाता है चारखाने की कमीज़ तलाशते तो सेल्समैन तरह तरह की डिज़ाइन और रूपरेखा की कमीज़ सामने कर देता है. ग्राहक को पसंद आए या ना आए लेकिन पास ही खड़ा कोई और एक चतुर सेल्समैन कुछ ही समय में भांप लेता है कि आपने किस कपडे को कितना छू कर देखा, कौन से ब्रांड पर ज़्यादा ध्यान दिया, किस तरह के कॉलर में ज़्यादा दिलचस्पी ली, बंदे को आखिर चाहिए क्या?
गूगल ऐडसेंस मायाजाल
और फिर वह चतुर सेल्समैन चिपक गया किसी भूत की तरह, उस संभावित ग्राहक के साथ ! फिल्मी कहानी जैसे समझ लीजिए कि वह ग्राहक अगर कहीं अखबार उठा कर पढ़े तो उसमें एक पर्चा मिल रहा, उसकी पसंद के कपड़े, ब्रांड, कॉलर वाली कमीज़ के किसी ठिकाने वाली दुकान की इत्तेला देते हुए, वह कोई टीवी चैनल देखने लगे तो उसकी पसंद वाली कमीज़ पहने कोई मॉडल, कार ड्राइव करते दिखे टीवी विज्ञापन में, सड़क पर चहलकदमी कर रहा हो वो व्यक्ति, तो सामने की बड़ी सी होर्डिंग में उसकी पसंद दर्शाती कमीज़ पर किसी छूट का ऐलान दिखे
अब गूगल ऐडसेंस की बात करें तो इंटरनेट पर आप किस वेबसाइट पर जाते हैं?, कौन कौन से पृष्ठ देखते हैं?, कितने समय तक देखते पढ़ते हैं?, कौन सी लिंक पर क्लिक करते हैं?, सर्च के सहारे किस चीज की तलाश करते हैं? पलक झपकते ही इन सब बातों का लेखा जोखा तैयार हो जाता है Browser Cookies के रूप में. और फिर, जब आप उसी ब्राउज़र में वेबसाईट पर लौट कर आते हैं या किसी और वेबसाईट पर जाते हैं तो वहाँ विज्ञापन देने वाले पहले से ही आपकी ‘हरकतों’ की Cookies फाइल लिए बैठे रहते हैं कि अब इसको इसकी रुचि के विज्ञापन दिखा ही दिए जाए. पट्ठा बच कर किधर जाएगा
फिर क्या है! चाहे Contextual advertising का मायाजाल हो या Behavioral targeting चारा. इधर पाठक ने क्लिक किया उस ऑनलाइन विज्ञापन पर, उधर वेबसाईट मालिक के खाते में जमा हो गई कुछ रकम
अब अगर आपको विज्ञापनों से कमाई करनी है तो अखबार का मालिक तो होना पडेगा ओह्ह्ह....क्या नहीं हो सकता तो चलो अखबार नहीं तो वेबसाईट या ब्लॉग होना चाहिए फिर online विज्ञापन दिखाए जाने के दो तरीके मुख्य हैं पहला तो Contextual advertising (प्रासंगिक विज्ञापन), दूसरा Behavioral targeting (स्वभावजन्य लक्ष्य)
Contextual advertising को कुछ यूँ समझिए कि कोई टीवी सीरियल अगर बच्चों पर केंद्रित कर दिखाया जा रहा तो उसमें आने वाले विज्ञापन में बच्चों की रुचि वाले उत्पाद की भरमार होगी. जैसे कॉम्प्लान, कैडबरी, टूथपेस्ट, बिस्कुट वगैरह. या फिर किसी विषय पर कार्यक्रम चल रहा हो, जैसे कि यात्रा. तो विज्ञापन दिखाए जाएंगे किसी होटल के, सस्ते टिकट के, सूटकेस/ बैग के जाए जिसमें Kids’ Lunch Box Favorites की बात की गई है. इस पर किस तरह के विज्ञापन है यह खुद ही देख लीजिए
गूगल ऐडसेंस उदाहरण
ऐसा ही कुछ इस लिंक पर देखा जा सकता है जिसमें धनिया पुदीना चटनी की विधि बताई गई है और विज्ञापन कौन से दिख रहे आप खुद देख लीजिए
गूगल ऐडसेंस
आपने देखा कि जो कुछ लिखा गया है उससे ही संबंधित विज्ञापन, गूगल का सर्वर उस स्थान पर दिखाना शुरू कर देता है जो विज्ञापन के लिए निर्धारित किया गया है वेबसाइट के मालिक द्वारा.
Contextual advertising के अंतर्गत दिखाए गए विज्ञापन पूरी तरह से उस ऑनलाइन लेख में लिखे गए शब्दों पर निर्भर है जिसे ‘देख-पढ़’ कर विज्ञापन-सर्वर यह निर्णय लेता है कि उसके पिटारे में इन शब्दों से संबंधित कौन सा विज्ञापन दिखाना है. और अगर एक ही शब्द से संबंधित बहुत सारे विज्ञापन है तो विज्ञापन-सर्वर उस विज्ञापन को प्राथमिकता देगा जिसको दिखाने लिए ऊंची बोली लगाई है विज्ञापन देने वाली कंपनी ने. यह कोई ज़रूरी नहीं कि कोई एक ही विज्ञापन हमेशा दिखे. अगले ही किसी पल अगर वह पृष्ठ दोबारा देखा जाए तो संभव है कोई और विज्ञापन दिखे.
Behavioral Targeting को समझना हो तो उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति कपड़ों की दुकान पर जाता है चारखाने की कमीज़ तलाशते तो सेल्समैन तरह तरह की डिज़ाइन और रूपरेखा की कमीज़ सामने कर देता है. ग्राहक को पसंद आए या ना आए लेकिन पास ही खड़ा कोई और एक चतुर सेल्समैन कुछ ही समय में भांप लेता है कि आपने किस कपडे को कितना छू कर देखा, कौन से ब्रांड पर ज़्यादा ध्यान दिया, किस तरह के कॉलर में ज़्यादा दिलचस्पी ली, बंदे को आखिर चाहिए क्या?
गूगल ऐडसेंस मायाजाल
और फिर वह चतुर सेल्समैन चिपक गया किसी भूत की तरह, उस संभावित ग्राहक के साथ ! फिल्मी कहानी जैसे समझ लीजिए कि वह ग्राहक अगर कहीं अखबार उठा कर पढ़े तो उसमें एक पर्चा मिल रहा, उसकी पसंद के कपड़े, ब्रांड, कॉलर वाली कमीज़ के किसी ठिकाने वाली दुकान की इत्तेला देते हुए, वह कोई टीवी चैनल देखने लगे तो उसकी पसंद वाली कमीज़ पहने कोई मॉडल, कार ड्राइव करते दिखे टीवी विज्ञापन में, सड़क पर चहलकदमी कर रहा हो वो व्यक्ति, तो सामने की बड़ी सी होर्डिंग में उसकी पसंद दर्शाती कमीज़ पर किसी छूट का ऐलान दिखे
अब गूगल ऐडसेंस की बात करें तो इंटरनेट पर आप किस वेबसाइट पर जाते हैं?, कौन कौन से पृष्ठ देखते हैं?, कितने समय तक देखते पढ़ते हैं?, कौन सी लिंक पर क्लिक करते हैं?, सर्च के सहारे किस चीज की तलाश करते हैं? पलक झपकते ही इन सब बातों का लेखा जोखा तैयार हो जाता है Browser Cookies के रूप में. और फिर, जब आप उसी ब्राउज़र में वेबसाईट पर लौट कर आते हैं या किसी और वेबसाईट पर जाते हैं तो वहाँ विज्ञापन देने वाले पहले से ही आपकी ‘हरकतों’ की Cookies फाइल लिए बैठे रहते हैं कि अब इसको इसकी रुचि के विज्ञापन दिखा ही दिए जाए. पट्ठा बच कर किधर जाएगा
फिर क्या है! चाहे Contextual advertising का मायाजाल हो या Behavioral targeting चारा. इधर पाठक ने क्लिक किया उस ऑनलाइन विज्ञापन पर, उधर वेबसाईट मालिक के खाते में जमा हो गई कुछ रकम
sir me ye janna chata hu ki ads ko apne blog pr kis trh laya ja skta h .... please tell me full instructions....... thnzxx and as soon as posiible sir.....
ReplyDelete