‘सरनेम’ के पीछे छिपी कहानी? जातिवाद का स्वरूप कहा से आया Origin surnames Hindi


सदियों से हमारा समाज जातिवाद और वर्ण विभाजन जैसे हालातों का साक्षी रहा है। समाज की बात करें तो हमारा भारतीय समाज चार विभिन्न वर्णों पर आधारित है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र नामक यह चार श्रेणियां जब से अस्तित्व में आई हैं तभी से मनुष्यों के बीच विरोधाभास और विवाद की स्थिति उत्पन्न होती देखी गई है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जातिवाद का स्वरूप भी कहीं ना कहीं इन्हीं चार वर्णों से जुड़ा हुआ है। हालात कुछ ऐसे बन पड़े हैं कि जब तक नाम के साथ सरनेम ना लगा हो तब तक संबंधित व्यक्ति


सरनेम आप कह सकते हैं कि वर्तमान दौर में ‘सरनेम’ हमारी पहचान बन चुके हैं और यह सरनेम हमारे पूर्वजों के व्यवसाय और वंश को प्रमाणित करते हैं। आजकल बहुत से लोगों को अपना सरनेम पसंद नहीं आता इसलिए वह इसे अपने नाम के साथ लगाना अपनी शोभा के विरुद्ध समझते हैं लेकिन सच यही है कि सरनेम हमारी पहचान बताता है।


यह सब तो ठीक है लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि व्यक्ति का सरनेम कैसे निर्धारित होता है? चलिए आज हम आपको सरनेम के पीछे की कहानी सुनाते हैं, शायद आपको भी अपने वंश का विस्तृत ब्यौरा मिल जाए। प्राचीन समय में अग्रोहा कहे जाने वाले वर्तमान शहर हिसार के लोगों को अग्रवाला या अग्रवाल कहा जाता है। अग्रोहा के 18 जिले थे जिनमें गर्ग, मंगल, कुच्चल, गोयन, बंसल, कंसल, सिंघल, जिन्दल, धरन, मधुकल, बिंदल, मित्तल, तायल, भंदल और नागल शामिल हैं। इन्हें अग्रवाल के पर्याय ही माना जाता है। लाहौर के समीप एक गांव हैं आहलू, वहां के बाशिंदों को आहलूवालिया कहा जाता है। वे लोग जो गांव छोड़कर अलग-अलग स्थानों पर जा बसे वे आज भी आहलूवालिया के नाम से जाने जाते हैं।

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