भगंदर क्या है Fistula बिना ऑपरेशन इलाज Fistula meaning ilaj
1 May 2023
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आज जानेगे भगंदर को जड़ से खत्म करने का उपाय
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Fistula meaning गुदा के भीतरी भाग में वेदनायुक्त पिंडिकाओ से बनने नासूर को भगंदर कहते है | नाड़ीव्रण का ही एक प्रकार है | क्योंकि गुदा के चारों ओर का भाग अधिक पोला होता है | अतः पिंडिका के पककर फूटने पर मवाद पोलो स्थान की धातुओं की तरफ चला जाता है, जिसका फिर ठीक प्रकार से निर्हरण नहीं हो पाता |
* भगंदर रोग में व्रण बहुत गहरे हो जाते हैं कई कार व्रण के अधिक गहरे हो जाने से मल भी उनसे लगात है। ऐसे में कोष्ठबद्धता हो जाने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है। भगंदर से हर समय रक्तमिश्रित पूयस्त्राव होने से कपड़े खराब होते है। रोगी को चलने-फिरने में भी बहुत कठिनाई होती है। भगंदर रोग से सूक्ष्म कीटाणु भी उत्पन्न होते है।
* भगंदर से पीड़ित रोगी न बिस्तर पर पीठ के बल लेट सकता है और न कुर्सी पर बैठकर कोई काम कर सकता है। सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में भी रोगी को बहुत पीड़ा होती है।
* भगंदर रोग में मलद्वार के ऊपर की ओर व्रण (पिड़िकाएं) बनते है। व्रण त्वचा में काफी गहरे हो जाते हैं। नासूर की तरह व्रण से रक्तमिश्रित पूयस्त्राव होता है। लम्बे समय तक भगंदर रोग नष्ट नहीं होती। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार अधिक समय तक उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों के सेवन से रक्त दूषित होन पर भगंदर रोग की उत्पत्ति होती है।
* शौच के बाद स्वच्छ जल से मलद्वार के आस-पास स्वच्छ नहीं करने से भी गंदगी के कारण व्रण की विकृति होती है। अधिक समय तक कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले इस रोग से अधिक पीड़ित होते है। साइकिल पर लम्बी दूरी तक यात्रा करेन वाले, साइकिल पर अधिक सामान ढोने वाले, ऊंट, घोड़े की अधिक सवारी करने वाले भंगदर रोग से पीड़ित होते है।
* आज लोगों का खान-पान पूरी तरह पश्चिमी सभ्यता पर आधारित हो गया है। लोग तेल, मिर्च, मसाला, तली, भूनी चीजें, फास्ट फूड, अनियमित भोजन का अधिक सेवन करते हैं। खाने में हरी सब्जियां, सलाद, पौष्टिक आहार का सेवन कम कर रहे हैं। व्यायाम, परिश्रम आदि से लोग दूर भाग रहे हैं जिसके कारण लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं। उपरोक्त निदान अनियमित आहार-विहार सेवन के कारण लोग एक जटिल बीमारी भगंदर का शिकार हो रहे हैं।
अपूर्ण भगंदर :- जब नासूर का केवल एक सिरा ही खुला होता है और दूसरा बंद होता है जब नासूर का मुख मालाशय पर खुलता है तो इसे अंतर्मुख भगंदर एवं मुख वाहर की त्वचा पर खुले उसे बाहिमुख भगंदर कहते है |
पूर्ण भगंदर : -अब नासूर का दूसरा सिरा भी दूसरी तरफ जाकर खुल जाता है तो उसे पूर्ण भगंदर कहते है |
गुदामार्ग को स्वच्छ रखना चाहिए | पेट में यदि कृमि हो तो उनको बहार नकालने के लिए औषधि लेनी चाहिए, अन्यथा वे गुदामार्ग को क्षतिग्रस्त कर सकते है |
* आयुर्वेद में भगंदर के लिए अग्निकर्म, शस्त्रकर्म, क्षारकर्म एवं औषधि चिकित्सा का विधान है
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग
* 25 ग्राम अनार के ताजे, कोमल पत्ते 300 ग्राम में देर तक उबालें। जब आधा जल शेष रह जाए तो उस जल को छानकर भगंदर को धोने से बहुत लाभ होता है।
* नीम के पत्तों को जल में उबालकर, छानकर भगंदर को दिन में दो बार अवष्य साफ करें।
* काली मिर्च और खदिर (लाजवंती) को जल के छींटे मारकर पीसकर भगंदर पर लेप करें।
* लहसुन को पीसकर, घी में भूनकर भंगदर पर बांधने से जीवाणु नष्ट होते हैं।
* नीम की पत्तियों को पीसकर भगंदर पर लेप करने से बहुत लाभ होता है।
* आक के दूध में रुई भिगोकर सुखाकर रखें। इस रुई को सरसों के तेल के साथ भिगोकर काजल बनाएं। काजल मिट्टी के पात्र पर बनाएं। इस काजल को भगंदर पर लगाने से बहुत लाभ होता है।
* आक का दूध और हल्दी मिलाकर उसको पीसकर शुष्क होने पर बत्ती बना लें। इस बत्ती को भगंदर के व्रण पर लगाने से बहुत लाभ होता है।
* चमेली के पत्ते, गिलोय, सोंठ और सेंधा नमक को कूट-पीसकर तक्र (मट्ठा) मिलाकर भंगदर पर लेप करें।
* कोष्ठबद्धता के कारण भगंदर रोग तेजी से फैलता है। कोष्ठबद्धता को जल्द नष्ट करेें।
* त्रिफला का 5 ग्राम चूर्ण रात्रि के समय हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें कोष्ठबद्धता दूर होगी।
* घी, तेल से बने पकवानों का सेवन न करें।
* उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
* ऊंट, घोडे, व स्कूटर, साईकिल पर यात्रा न करें।
* अधिक समय कुर्सी पर बैठकर काम न करें।
* दूषित जल से स्नान न करें।
* भंगदर रोग के चतले सहवास से अलग रहे।
* बजार के चटपटे, स्वादिष्ट छोले-भठूरे, समोसे, कचौड़ी, चाट-पकौड़ी आदि का सेवन न करें।
* त्रिफला क्वाथ से नियमित भगंदर के व्रण को धोकर बिल्ली अथवा कुत्ते की हड्डी के महीन चूर्ण का लेप कर देने से भगंदर ठीक हो जाता है |
* रोगी को किशोर गूगल, कांचनार गूगल एवं आरोग्यवर्द्धिनी वटी की दो दो गोली दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ करने पर उत्तम लाभ होता है नियमित दो माह तक इसका प्रयोग करने से भगंदर ठीक हो जाता है |
* भगंदर के रोगी को भोजन के बाद विंडगारिष्ट, अभयारिस्ट एवं खादिरारिष्ट 20-20 मिली. की मात्रा में सामान जल मिलाकर सेवन करना चाहिए |
* स्थानीय उपचार के रूप में जात्यादि तैल, निंब तैल, स्वर्णक्षीरी तैल, निर्गुड तैल, विष्यदन तैल, आदि में से किसी एक में रुई भिगोकर एवं हल्का गर्म करके व्रण पर रखकर पट्टी बांधने से व्रण का शोधन एवं रोपण हो जाता है
* पेट से जुड़ी दो-तीन खराब बीमारियां हैं, जैसे बवासीर, पाइल्स, हेमोरॉइड्स, फिसचुला, फिसर... इन सबके लिए मूली का रस बेहद कारगर है। एक कप मूली का रस पिएं। ऐसा खाना खाने के बाद (सुबह, दोपहर, शाम कभी नहीं) न करें, हर तरह का बवासीर सही हो जाता है। भगंदर, फिसचुला, फिसर भी इससे ठीक होता है। अनार का रस भी इसी तरह से ले सकते है
भगंदर क्या है piles meaning in hindi
आजकल भगंदर एक जटिल समस्या बनकर उभर गई है। इसका इलाज और इसे जड़ से समाप्त करना चिकित्सकों के लिए कड़ी चुनौती साबित हो रही है। इस रोग में गुदा मार्ग के बाहर एक या एक से अधिक पिंडिकाएं उत्पन्न हो जाती है। इससे स्राव आता रहता है।
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भगंदर को जड़ से खत्म करने का उपाय
Fistula meaning गुदा के भीतरी भाग में वेदनायुक्त पिंडिकाओ से बनने नासूर को भगंदर कहते है | नाड़ीव्रण का ही एक प्रकार है | क्योंकि गुदा के चारों ओर का भाग अधिक पोला होता है | अतः पिंडिका के पककर फूटने पर मवाद पोलो स्थान की धातुओं की तरफ चला जाता है, जिसका फिर ठीक प्रकार से निर्हरण नहीं हो पाता |
इसमें रोगी को अत्यंत पीड़ा होती है और वह उठने बैठने एवं चलने फिरने में भी बहुत कष्ट महसूस करता है | ठीक प्रकार से उपचार न होने पर यह नासूर बढ़कर दूसरी तरफ भी अपना मुख बना लेता है | तब इसकी स्थिति दो मुखी नली के समान हो जाती है | कभी कभी तो इसका दूसरा मुख नितंब या जांघ तक पहुंचकर खुलता है | ऐसी स्थिति में भगंदर के नासूर से रक्त, लसिका और दुर्गन्धयुक्त मल रिसता है |
फिस्टुला का आयुर्वेदिक इलाज
* भगंदर रोग में व्रण बहुत गहरे हो जाते हैं कई कार व्रण के अधिक गहरे हो जाने से मल भी उनसे लगात है। ऐसे में कोष्ठबद्धता हो जाने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है। भगंदर से हर समय रक्तमिश्रित पूयस्त्राव होने से कपड़े खराब होते है। रोगी को चलने-फिरने में भी बहुत कठिनाई होती है। भगंदर रोग से सूक्ष्म कीटाणु भी उत्पन्न होते है।
* भगंदर से पीड़ित रोगी न बिस्तर पर पीठ के बल लेट सकता है और न कुर्सी पर बैठकर कोई काम कर सकता है। सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में भी रोगी को बहुत पीड़ा होती है।
* भगंदर रोग में मलद्वार के ऊपर की ओर व्रण (पिड़िकाएं) बनते है। व्रण त्वचा में काफी गहरे हो जाते हैं। नासूर की तरह व्रण से रक्तमिश्रित पूयस्त्राव होता है। लम्बे समय तक भगंदर रोग नष्ट नहीं होती। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार अधिक समय तक उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों के सेवन से रक्त दूषित होन पर भगंदर रोग की उत्पत्ति होती है।
* शौच के बाद स्वच्छ जल से मलद्वार के आस-पास स्वच्छ नहीं करने से भी गंदगी के कारण व्रण की विकृति होती है। अधिक समय तक कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले इस रोग से अधिक पीड़ित होते है। साइकिल पर लम्बी दूरी तक यात्रा करेन वाले, साइकिल पर अधिक सामान ढोने वाले, ऊंट, घोड़े की अधिक सवारी करने वाले भंगदर रोग से पीड़ित होते है।
* आज लोगों का खान-पान पूरी तरह पश्चिमी सभ्यता पर आधारित हो गया है। लोग तेल, मिर्च, मसाला, तली, भूनी चीजें, फास्ट फूड, अनियमित भोजन का अधिक सेवन करते हैं। खाने में हरी सब्जियां, सलाद, पौष्टिक आहार का सेवन कम कर रहे हैं। व्यायाम, परिश्रम आदि से लोग दूर भाग रहे हैं जिसके कारण लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं। उपरोक्त निदान अनियमित आहार-विहार सेवन के कारण लोग एक जटिल बीमारी भगंदर का शिकार हो रहे हैं।
Piles fistula causes in hindi
- गुदामार्ग (anus) के अस्वच्छता रहना या लगातार लम्बे समय तक कब्ज बने रहना अत्यधिक साइकिल या घोड़े की सवारी करना बहुत अधिक समय तक कठोर, ठंडे गीले स्थान पर बैठना
- गुदामैथुन की प्रवृत्ति मलद्वार पास उपस्थित कृमियों के उपद्रव के कारण
- Anus में खुजली होने पर उसे नाखून आदि से खुरच देने के कारण बने घाव के फलस्वरूप
- गुदा में आघात लगने या कट फट जाने पर गुदा मार्ग पर फोड़ा-फुंसी हों जाने पर |
- गुदा मार्ग से किसी नुकीले वस्तु के प्रवेश कराने के उपरांत बने घाव से
Types of anal fistulas भगंदर प्रकार
अपूर्ण भगंदर :- जब नासूर का केवल एक सिरा ही खुला होता है और दूसरा बंद होता है जब नासूर का मुख मालाशय पर खुलता है तो इसे अंतर्मुख भगंदर एवं मुख वाहर की त्वचा पर खुले उसे बाहिमुख भगंदर कहते है |
पूर्ण भगंदर : -अब नासूर का दूसरा सिरा भी दूसरी तरफ जाकर खुल जाता है तो उसे पूर्ण भगंदर कहते है |
Piles fistula symptoms in hindi
- भगंदर होने से पूर्व गुदा में छोटी छोटी फुंसिया का बार बार होना जिन्हें पिंडिकायें कहते है | कुछ समय पश्चात ये फुंसियां ठीक न होकर लाल रंग की हो जाती है और फूटकर व्रण का निर्माण करती है | गुदा प्रवेश में खुजली व पीड़ा जो कि मल त्याग के समय बढ़ जाती है |
- गुदा से रक्त एवं मवाद आने लगता है | व्रण में बहुत तेज़ दर्द होता है जिससे रोगी को उठने बैठने, चलने फिरने में कष्ट होता है | ठीक से चिकित्सा न होने पर फुंसियां मुनक्के एवं छुआरे जितने बड़ी होकर रोगी के अत्यधिक कष्ट देती है |
- कमर के पास सुई चुभने जैसा दर्द, जलन, खुजली व वेदना के अनुभूती होती है | यदि भगंदर वातिक है तो तीव्र वेदना, पिंडिका के फूटने पर रक्त वर्ण का फेनयुक्त स्राव व अनेक मुख वाले वृणों से मल एवं मूत्र निकलता है |
- पैत्तिक भगंदर में पिंडिका शीघ्रता से पकती है और उसमे से दुर्गन्ध, ऊष्ण स्राव होने लगता है | पिंडिका का आकार ऊंट की गर्दन के समान होता है |
- कफज भगंदर में गुदामार्ग में खुजली के साथ लगातार गाढ़ा स्राव होता है इसमें सफेद कठिन पिंडिका होती है | इस प्रकार के भगंदर में पीड़ा कम होती है |
- यदि अन्दर सन्निपारज प्रकृति का है तो पिंडिका का रंग विविध प्रकार होता है | इस प्रकार का भगंदर पीड़ादायक एवं स्रावयुक्त होता है | इसकी आकृति गाय के थान के समान होती है
भगंदर फिस्टुला का उपचार बचाव -fistula ka gharelu ilaj in hindi
गुदामार्ग को स्वच्छ रखना चाहिए | पेट में यदि कृमि हो तो उनको बहार नकालने के लिए औषधि लेनी चाहिए, अन्यथा वे गुदामार्ग को क्षतिग्रस्त कर सकते है |
* आयुर्वेद में भगंदर के लिए अग्निकर्म, शस्त्रकर्म, क्षारकर्म एवं औषधि चिकित्सा का विधान है
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग
* 25 ग्राम अनार के ताजे, कोमल पत्ते 300 ग्राम में देर तक उबालें। जब आधा जल शेष रह जाए तो उस जल को छानकर भगंदर को धोने से बहुत लाभ होता है।
* नीम के पत्तों को जल में उबालकर, छानकर भगंदर को दिन में दो बार अवष्य साफ करें।
* काली मिर्च और खदिर (लाजवंती) को जल के छींटे मारकर पीसकर भगंदर पर लेप करें।
* लहसुन को पीसकर, घी में भूनकर भंगदर पर बांधने से जीवाणु नष्ट होते हैं।
* नीम की पत्तियों को पीसकर भगंदर पर लेप करने से बहुत लाभ होता है।
* आक के दूध में रुई भिगोकर सुखाकर रखें। इस रुई को सरसों के तेल के साथ भिगोकर काजल बनाएं। काजल मिट्टी के पात्र पर बनाएं। इस काजल को भगंदर पर लगाने से बहुत लाभ होता है।
* आक का दूध और हल्दी मिलाकर उसको पीसकर शुष्क होने पर बत्ती बना लें। इस बत्ती को भगंदर के व्रण पर लगाने से बहुत लाभ होता है।
* चमेली के पत्ते, गिलोय, सोंठ और सेंधा नमक को कूट-पीसकर तक्र (मट्ठा) मिलाकर भंगदर पर लेप करें।
* कोष्ठबद्धता के कारण भगंदर रोग तेजी से फैलता है। कोष्ठबद्धता को जल्द नष्ट करेें।
* त्रिफला का 5 ग्राम चूर्ण रात्रि के समय हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें कोष्ठबद्धता दूर होगी।
क्या न खाएं:-
* घी, तेल से बने पकवानों का सेवन न करें।
* उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
* ऊंट, घोडे, व स्कूटर, साईकिल पर यात्रा न करें।
* अधिक समय कुर्सी पर बैठकर काम न करें।
* दूषित जल से स्नान न करें।
* भंगदर रोग के चतले सहवास से अलग रहे।
* बजार के चटपटे, स्वादिष्ट छोले-भठूरे, समोसे, कचौड़ी, चाट-पकौड़ी आदि का सेवन न करें।
* त्रिफला क्वाथ से नियमित भगंदर के व्रण को धोकर बिल्ली अथवा कुत्ते की हड्डी के महीन चूर्ण का लेप कर देने से भगंदर ठीक हो जाता है |
* रोगी को किशोर गूगल, कांचनार गूगल एवं आरोग्यवर्द्धिनी वटी की दो दो गोली दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ करने पर उत्तम लाभ होता है नियमित दो माह तक इसका प्रयोग करने से भगंदर ठीक हो जाता है |
* भगंदर के रोगी को भोजन के बाद विंडगारिष्ट, अभयारिस्ट एवं खादिरारिष्ट 20-20 मिली. की मात्रा में सामान जल मिलाकर सेवन करना चाहिए |
* स्थानीय उपचार के रूप में जात्यादि तैल, निंब तैल, स्वर्णक्षीरी तैल, निर्गुड तैल, विष्यदन तैल, आदि में से किसी एक में रुई भिगोकर एवं हल्का गर्म करके व्रण पर रखकर पट्टी बांधने से व्रण का शोधन एवं रोपण हो जाता है
* पेट से जुड़ी दो-तीन खराब बीमारियां हैं, जैसे बवासीर, पाइल्स, हेमोरॉइड्स, फिसचुला, फिसर... इन सबके लिए मूली का रस बेहद कारगर है। एक कप मूली का रस पिएं। ऐसा खाना खाने के बाद (सुबह, दोपहर, शाम कभी नहीं) न करें, हर तरह का बवासीर सही हो जाता है। भगंदर, फिसचुला, फिसर भी इससे ठीक होता है। अनार का रस भी इसी तरह से ले सकते है
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ReplyDeletenice information
ReplyDeleteसर मेरे वादी बवासीर है लगभग 20साल से है अब लेट्रीन कए साथ ब्लड आता है दर्द फ़िर भी नहीँ होता है मे क्या करूँ
ReplyDeleteHello. Pichle 3 dino se mujhe kabj tha. Aaj me shoch gya to mere guda se blood aaya. Isliye mene iske bare me search Kia. Mere sath esa phli bar hua h. Help me. Mujhe Kya karna chahiye?
ReplyDeleteMai brijbhushan singh sir mujhe latin ke raste dard and mirchi jaise lagata hai और जैसे कोई अंदर से काटता रहता है इसके लिए मैं क्या करूं प्लीज बताइए सर इसको साइन आउट
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